रविवार, 4 जनवरी 2009
हे करुणा सिन्धु भगवन
हे करुणा सिन्धु भगवन!, तुम प्रेम से मिल जात हो।
श्याम सुंदर सांवरे दो दरस, क्यों तडपात हो.?
द्रौपदी की विनय सुन, धाये थे सब को छोड़कर।
प्रेम से हे नाथ! तुम भी, भक्त-वश हो जात हो।
भगत धन्ना जाट की,खाई थीं रूखी रोटियां।
ग्वाल-बाल साथ मिल, माखन भी प्रभु चुरात हो।
संसार के कल्याण हित,मारा था प्रभु ने कंस को।
भक्त को भव सागरों से,पार तुम्हीं लगात हो।
'शान्ति' हो बेआसरा,दम तोड़ती मँझधार में।
है आस तुमरे दरस की,काहे न झलक दिखात हो?
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श्याम सुंदर नन्दलाल
श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।
तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।
त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।
सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।
ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।
गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।
टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।
खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।
तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।
जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।
दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।
'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।
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** * हे करुणा सिन्धु भगवन* हे करुणा सिन्धु भगवन!, तुम प्रेम से मिल जात हो। श्याम सुंदर सांवरे दो दरस, क्यों तडपात हो.? द्रौपदी की विनय सुन, धाये थे सब को छोड़कर। प्रेम से हे नाथ! तुम भी, भक्त-वश ...
जवाब देंहटाएंआचार्य जी!
आपके ब्लाग पर रचना खुल नही रही है। कुछ भी नही दिखाई दे रहा है। अपने डैश-बोर्ड से ही उपरोक्त पंक्तियाँ कापी पेस्ट की हैं कृपया जाँच लें कहाँ त्रुटि हो गयी है? या दोबारा पोस्ट कर दें। कल भी यही समस्या थी। शायद इसीलिए किसी भी पाठक ने टिप्पणी नही की होगी।
rachna nahi dikh rahi,par sach hai ram naam sukhdaayi.......
जवाब देंहटाएंaapne to krishna virah ko bahut hi achche dhang se ukera hai.
जवाब देंहटाएंgaj ki pukar ho ya draupdi ki ter
aate ho daude nhi karte ho der
meri bhi bigdi bana jana
ek din tu meri gali aa jana
mera bhi makhan tu kha jana
हे करुना सिन्धु भगवन तुम प्रेम से मिल जाते हो ,
जवाब देंहटाएंबहुत भावभीनी पंक्तियाँ है जो सत्य भी है -क्योंकि भगवान् प्रेम के भूखे होते हैं