शनिवार, 11 अगस्त 2012

कृष्ण भजन:


 
श्याम सुंदर नन्दलाल

स्व. श्रीमती शान्ति देवी वर्मा







वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा बापू के नेतृत्व में स्वतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले रायबहादुर माताप्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री थीं.  उनका विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वालाप्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा (अब स्व.) सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था. उन्होंने अवधी, भोजपुरी मायके से तथा बुन्देली, खड़ी बोली ससुराल से ग्रहण की तथा अपने आस्तिक संस्कारशील स्वभाववश भगवद भजन रचे. वे मानस मंडली में मानस पाठ के समय  प्रसंगानुकूल भजन रचकर गया करती थीं. ससुराल में कन्याओं के उच्च अध्ययन की प्रथा न होने पर भी उन्होंने अपनी चारों पुत्रियों को उच्च शिक्षा दिलाकर शिक्षण कर्म में प्रवृत्त कराया तथा सेवाकर्मी पुत्र वधुओं का चयन किया. साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर के माध्यम से रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर संस्कारधानी जबलपुर  की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत देश व समाज के प्रति समर्पित रहने की प्रेरणा उन्होंने दी।

स्व. शांति देवी वर्मा
*
श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।

तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।


त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।

सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।


ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।

गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।


टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।

खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।


तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।


जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।


दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।

'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।

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Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
salil.sanjiv@gmail.com
0761- 2411131 / 09425183244

शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

शुभ कामनाएं सभी को... संजीव "सलिल"

शुभ कामनाएं सभी को...


संजीव "सलिल"

salil.sanjiv@gmail.com

divyanarmada.blogspot.com

*

शुभकामनायें सभी को, आगत नवोदित साल की.

शुभ की करें सब साधना,चाहत समय खुशहाल की..

शुभ 'सत्य' होता स्मरण कर, आत्म अवलोकन करें.

शुभ प्राप्त तब जब स्वेद-सीकर राष्ट्र को अर्पण करें..

शुभ 'शिव' बना, हमको गरल के पान की सामर्थ्य दे.

शुभ सृजन कर, कंकर से शंकर, भारती को अर्ध्य दें..

शुभ वही 'सुन्दर' जो जनगण को मृदुल मुस्कान दे.

शुभ वही स्वर, कंठ हर अवरुद्ध को जो ज्ञान दे..

शुभ तंत्र 'जन' का तभी जब हर आँख को अपना मिले.

शुभ तंत्र 'गण' का तभी जब साकार हर सपना मिले..

शुभ तंत्र वह जिसमें, 'प्रजा' राजा बने, चाकर नहीं.

शुभ तंत्र रच दे 'लोक' नव, मिलकर- मदद पाकर नहीं..

शुभ चेतना की वंदना, दायित्व को पहचान लें.

शुभ जागृति की प्रार्थना, कर्त्तव्य को सम्मान दें..

शुभ अर्चना अधिकार की, होकर विनत दे प्यार लें.

शुभ भावना बलिदान की, दुश्मन को फिर ललकार दें..

शुभ वर्ष नव आओ! मिली निर्माण की आशा नयी.

शुभ काल की जयकार हो, पुष्पा सके भाषा नयी..

शुभ किरण की सुषमा, बने 'मावस भी पूनम अब 'सलिल'.

शुभ वरण राजिव-चरण धर, क्षिप्रा बने जनमत विमल..

शुभ मंजुला आभा उषा, विधि भारती की आरती.

शुभ कीर्ति मोहिनी दीप्तिमय, संध्या-निशा उतारती..

शुभ नर्मदा है नेह की, अवगाह देह विदेह हो.

शुभ वर्मदा कर गेह की, किंचित नहीं संदेह हो..

शुभ 'सत-चित-आनंद' है, शुभ नाद लय स्वर छंद है.

शुभ साम-ऋग-यजु-अथर्वद, वैराग-राग अमंद है..

शुभ करें अंकित काल के इस पृष्ट पर, मिलकर सभी.

शुभ रहे वन्दित कल न कल, पर आज इस पल औ' अभी..

शुभ मन्त्र का गायन- अजर अक्षर अमर कविता करे.

शुभ यंत्र यह स्वाधीनता का, 'सलिल' जन-मंगल वरे..

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सोमवार, 18 मई 2009

राम नाम सुखदायी

राम नाम सुखदायी
भजन सन्ग्रह

भजनकार
स्वर्गीय शान्ति देवी वर्मा

संपादन
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर भोपाल ग्वालियर रायपुर बंगलुरु
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राम नाम सुखदायी

भजन संग्रह
द्वितीय संस्करण २००९
भजनकारस्वर्गीय शान्ति देवी वर्मा
संपादन आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
समन्वय प्रकाशन अभियान जबलपुर भोपाल ग्वालियर रायपुर बंगलुरु
*********** वंदन
निराकार परब्रम्ह हे! चित्रगुप्त भगवानविधि हरि हर त्रय हो तुम्हीं, कर्म देव गुणवानदैविक - भौतिक शक्तियाँ, रंग रूप रस खानतुम्हीं बसे चर - अचर में, रच संतति मतिमान
जो रहस्य यह जानते, वे ही हैं कायस्थकर्मदेव को पूजते, बिना हुए सन्यस्त
*********** नमन हिन्दी की आधुनिक मीरां महीयसी महादेवी वर्मा
हिन्दी की बिंदी तव चरणों में शत वन्दन भावों की अंजली अर्पित, श्रद्धा का चंदन
फूंके प्राण गीत में, कविता में नव जीवनदीप शिखावत जलीं, श्वास हर विहंस अकम्पन
तीर्थराज की लुप्त सरस्वती सी तुम पावनहुई त्रिवेणी पूर्ण मिली नर्मदा लुभावन
शाश्वत अविनाशी मूल्यों का कर चिर गायन वेदों सा साहित्य रचा शुचि 'सलिल' सनातन *********** प्राक्कथन
अपने परम पूज्य पिताश्री स्व. राय बहादुर माता प्रसाद सिन्हा 'रईस', ऑनरेरी मजिस्ट्रेट मैनपुरी उत्तर प्रदेश को शैशव से ही नित्य शिव भक्ति में लीन होते देखकर मेरे बल मन पर निराकार के साकार विग्रह के प्रति आराध्य-भावः उत्पन्न हो गया था. महात्मा गाँधी के आव्हान पर पिताश्री ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र दे कर नेहरू जी के नेतृत्व में कांग्रेस सत्याग्रही बन गए. विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी, खान-पान के विदेशी बर्तन फेंक दिए गए, मुझे एवं छोटी बहिन को अंग्रेजी पढानेवाली मेम हटाकर भारतीय संगीत सिखाने के लिए शिक्षिका लगाई गयी. पिताजी कांग्रेस सभाओं में भाग लेते, जो अंग्रेज अधिकारी पापा के साथ रोज पार्टी करते थे वही उन्हें गिरफ्तार करने लगे. हम परिवारजन भगवान का भजन कर खुदको हिम्मत बंधाते. पापा त्रिपुरी कांग्रेस में भाग लेने जबलपुर आए. यहाँ उनकी मुलाक़ात स्थानीय सत्याग्रही श्री ज्वाला प्रसाद वर्मा से हुई जो शहर कोतवाली के पास सुन्दरलाल तहसीलदार के बाड़े में रहते थे तथा सेठ गोविन्द दास, द्वारका प्रसाद मिश्रा आदि के नेतृत्व में सक्रिय थे तथा बड़े फुहारे पर बजाजी (कपडे) की दूकान करते थे. पापा बाड़े में बने शिव मन्दिर देखकर बहुत प्रभावित हुए. बाद में ज्वालाप्रसाद जी के छोटे भाई श्री राज बहादुर वर्मा जो तब असिस्टेंट जेलर थे, के साथ मेरा विवाह हुआ. विवाह के बाद ससुराल में शिव-भक्ति का वातावरण मिला. मेरे ददिया ससुर स्व. सुन्दरलाल तहसीलदार एवं उनके छोटे भाई खैरातीलाल जी (स्व. महादेवी वर्मा के नाना) द्वारा बनवाये गये शिव मंदिरों तथा पतिदेव श्री राजबहादुर वर्मा जेल अधीक्षक की सात्विक आचार-विचार ने भगवान ऐ प्रति भक्ति भाव को पुष्ट किया. कायस्थ परिवार में सभी देवी-देवताओं में परात्पर परम ब्रम्ह कर्म देव श्री चित्रगुप्त का प्रादुर्भाव मानकर श्रद्धा सहित पूजने की परम्परा है. मेरे मन के भाव अपने आप भजनों का रूप लेते गए. श्रीमती कृष्णा श्रीवास्तव (महर्षि महेश योगी की भाभी), श्रीमती साहू एवं ब्योहार बाग़ रामायण मण्डली की अन्य सदस्यों ने इन्हें सराहा-गाया और छपाने के लिए लगातार आग्रह किया किंतु इन्हें भक्तजनों के सामने लाने में मुझे संकोच था. संभवतः ये कल क्रम में नष्ट भी हो गए होते किंतु देवी प्रेरणा से मेरी प्रिय बहुओं साधना-पूनम, बेटियों आशा, पुष्प, किरण, सुषमा तथा बेटों संजीव-राजीव के आग्रह और प्रयास से यह भजन संग्रह छपकर आपके हाथों में है. भगवान का महिमा-गायन भक का अहोभाग्य है. तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा की विनम्र भावना सहित यह भावांजलि समर्पित कर मन को शान्ति मिल रही है. बेटे संजीव को इन्हें संपादित-प्रकाशित करने के लिए माँ का आशीष. अपने प्रपौत्रों-प्रपौत्रियों अन्शुमान, आशुतोष, अभिषेक, निहारिका, निशिता, मन्वंतर, तुहिना, अर्चित, अर्पिता, मयंक और प्रियंक को इस आशा के साथ ये भजन सौंपती हूँ कि उनके मनों में सात्विकता, सरलता और शुचिता की ज्योति सदा जलती रहेगी, भक्ति-भावना हमेशा पलती रहेगी. प्रभु चरणों की अनुरागी शान्ति देवी *********** सम्पादकीय * भगवन का गुणगान भक्त की के जीवन का अरमान ही नहीं, पहचान भी होता है. * साँस की राधिका, आस की बांसुरी लिए मन को भगवद्भक्ति के महारास में लीन कर दे, यही भक्त का साध्य और अभीष्ट है. * परम पूज्य माँ के भावः भक्तिमय ह्रदय से गत ४ - ५ दशकों में विविध अवसरों पर निःसृत उदगारों को प्रभु-चरणों में अर्पित करने के पुनीत कार्य में मुझ अकिंचन को कुछ भूमिका निभाने का अवसर देकर परम प्रभु तथा माँ ने मुझे आसीषित कर धन्य किया है. * बेटा माँ से सदा लेता ही है, दे कुछ नहीं सकता. माँ की सौगात देख-अदेखी संतानों तक पहुँचाने का माध्यम बन पाना पूर्व जन्म के पुन्य कर्मों का फल है. * चकाचौंध भरी क्षणजीवी दूरदर्शनी आधुनिक संस्कृति के प्रसार-कल में परम्परागत सरलता, सहजता, औदार्यता, आत्मीयता और सात्वित्कता के पञ्च तत्व दैनंदिन जीवन से लुप्त होते जा रहे हैं और उनका स्थान द्वेष ईर्ष्या स्पर्धा कटुता तथा स्वार्थपरता के पञ्च विष लेते जा रहे हैं. * इस संक्रमण काल में भौतिक सुख-सम्रद्धि, एवं विलासिताओं के कराल व्याल जाल से बचते हुए सत-शिव-सुंदर की उपासना करते हुए सत-चित-आनंद की अनुभूति करने-कराने में ये भजन सहायक हो सकें, आप इन भजनों का गायन कर पल मात्र भी प्रभु की प्रेम प्रसादी पा सकें तो यह बालकोचित प्रयास सार्थक होगा. तात-मात चरणकमलानुरागी संजीव 'सलिल' *********** अनुक्रम
क्रमांक मुखड़ा प्र्ष्ठांक १. वन्दन २. नमन३. सम्पादकीय४. अनुक्रम५. श्री भगवान६. अवध में जन्में हैं श्रीराम७. बाजे अवध बधैया८. सुनो री गुइयाँ ९. सिया फुल बगिया आयी है१०. चली सिया गिरिजा पूजन को११. मिथिला में सजी बरात १२. राम द्वारे आए१३. जनक अंगना में होती ज्योनार१४. ठाडे जनक संकुचाय १५. चलीं जानकी प्यारी१६. द्वारे बहुरिया आयी१७. आयी सिया ससुराल१८. होली खेलें सिया की सखियाँ१९. होली खेलें चारों भाई २०. वन को चले रघुवीर२१. तिलक करें रघुवीर२२. मिला राम नाम गले का हरवा२३. राम जी आए हमरे द्वार २४. बहे राम रस गंगा२५. चल मन सीता राम की शरण २६. रघुवर की कृपा हो जाती है२७. तुम्हारे संग वन को२८. शिवजी की आयी बारात२९. गिरिजा कर सोलह सिंगार३०. मोहक छटा पार्वती शिव की३१. भोले घर बाजे बधाई ३२. धूमधाम भोले के गाँव३३. मनभावन मुरली३४. हरि को बनना बनावें३५. चरणों में अपने३६. हे करुणा सिन्धु भगवन!३७. श्याम सुंदर नन्दलाल ३८. सत्याग्रह करने ३९. बापूजी आए नगरिया *********** श्री भगवान मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... जब मेरे प्रभु जग में आवें, नभ से देव सुमन बरसावें.कलम-दवात सुशोभित कर में, देते अक्षर ज्ञानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... चित्रगुप्त प्रभु शब्द-शक्ति हैं, माँ सरस्वती नाद शक्ति हैं.ध्वनि अक्षर का मेल ऋचाएं, मन्त्र-श्लोक विज्ञानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... मातु नंदिनी आदिशक्ति हैं. माँ इरावती मोह-मुक्ति हैं.इडा-पिंगला रिद्धि-सिद्धिवत, करती जग-उत्थानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... कण-कण में जो चित्र गुप्त है, कर्म-लेख वह चित्रगुप्त है.कायस्थ है काया में स्थित, आत्मा महिमावानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... विधि-हरि-हर रच-पाल-मिटायें, अनहद सुन योगी तर जायें.रमा-शारदा-शक्ति करें नित, जड़-चेतन कल्याण मिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... श्यामल मुखछवि, रूप सुहाना, जैसा बोना वैसा पाना.कर्म न कोई छिपे ईश से, 'सलिल' रहे अनजानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... लोभ-मोह-विद्वेष-काम तज, करुणासागर प्रभु का नाम भज.कर सत्कर्म 'शान्ति' पा ले, दुष्कर्म अशांति विधानमिटाने भक्तों का दुःख-दर्द, जगत में आते श्री भगवान्... ***********
अवध में जन्में हैं श्री राम अवध में जन्में हैं श्री राम, दरश को आए शंकरजी...
कौन गा रहे?, कौन नाचते?, कौन बजाएं करताल?दरश को आए शंकरजी...
ऋषि-मुनि गाते, देव नाचते, भक्त बजाएं करताल.दरश को आए शंकरजी...
अंगना मोतियन चौक है, द्वारे हीरक बन्दनवार.दरश को आए शंकरजी...
मलिन-ग्वालिन सोहर गायें, नाचें डे-डे ताल.दरश को आए शंकरजी...
मैया लाईं थाल भर मोहरें, लो दे दो आशीष.दरश को आए शंकरजी...
नाग त्रिशूल भभूत जाता लाख, डरे न मेरो लालदरश को आए शंकरजी...
बिन दर्शन हम कहूं न जैहें, बैठे धुनी रमाय.दरश को आए शंकरजी...
अलख जगाये द्वार पर भोला, डमरू रहे बजाय.दरश को आए शंकरजी...
रघुवर गोदी लिए कौशल्या, माथ डिठौना लगाय.दरश को आए शंकरजी...
जग-जग जिए लाल माँ तेरो, शम्भू करें जयकार.दरश को आए शंकरजी...
*********** बाजे अवध बधैया बाजे अवध बधैया, हाँ हाँ बाजे अवध बधैया... मोद मगन नर-नारी नाचें, नाचें तीनों मैया. हाँ-हाँ नाचें तीनों मैया, बाजे अवध बधैया.. मातु कौशल्या जनें रामजी, दानव मार भगैयाहाँ हाँ दानव मार भगैया बाजे अवध बधैया... मातु कैकेई जाए भरत जी, भारत भार हरैयाहाँ हाँ भारत भार हरैया, बाजे अवध बधैया... जाए सुमित्रा लखन-शत्रुघन, राम-भारत की छैयां हाँ हाँ राम-भारत की छैयां, बाजे अवध बधैया... नृप दशरथ ने गाय दान दी, सोना सींग मढ़ईया हाँ हाँ सोना सींग मढ़ईया, बाजे अवध बधैया... रानी कौशल्या मोहर लुटाती, कैकेई हार-मुंदरिया हाँ हाँ कैकेई हार-मुंदरिया, बाजे अवध बधैया... रानी सुमित्रा वस्त्र लुटाएं, साडी कोट रजैयाहाँ हाँ साडी कोट रजैया, बाजे अवध बधैया... विधि-हर हरि-दर्शन को आए, दान मिले कुछ मैयाहाँ हाँ दान मिले कुछ मैया, बाजे अवध बधैया... 'शान्ति'-सखी मिल सोहर गावें, प्रभु की लेनी बलैंयाँ हाँ हाँ प्रभु की लेनी बलैंयाँ, बाजे अवध बधैया... *********** सुनो री गुइयाँ सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ, राज कुंवर दो आए. सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ... कौन के कुंवर?, कहाँ से आए?, कौन काज से आए? कहो री गुइयाँ, कहो री गुइयाँ... दशरथ-कुंवर, अवध से आए, स्वयम्वर देखे आए. सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ... का पहने हैं?, का धारे हैं?, कैसे कहो सुहाए? कहो री गुइयाँ, कहो री गुइयाँ... पट पीताम्बर, कांध जनेऊ, श्याम-गौर मन भये. सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ... शौर्य-पराक्रम भी है कछु या कोरी बात बनायें? कहो री गुइयाँ, कहो री गुइयाँ... राघव-लाघव, लखन शौर्य से मार ताड़का आए. सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ... चार कुंअरि हैं जनकपुरी में, कौन को जे मन भाए? कहो री गुइयाँ, कहो री गुइयाँ... अवधपुरी में चार कुंअर, जे सिया-उर्मिला भाए. सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ... विधि सहाय हों, कठिन परिच्छा रजा जनक लगाये. कहो री गुइयाँ, कहो री गुइयाँ... तोड़ सके रघुवर पिनाक को, सिया गिरिजा से मनाएं. सुनो री गुइयाँ, सुनो री गुइयाँ... *********** सिया फुलबगिया आई हैं गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... कमर करधनी, पांव पैजनिया, चाल सुहाई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... कुसुम चुनरी की शोभा लख, रति लजाई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... चंदन रोली हल्दी अक्षत माल चढाई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... दत्तचित्त हो जग जननी की आरती गाई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... फल मेवा मिष्ठान्न भोग को नारियल लाई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... लताकुंज से प्रगट भए लछमन रघुराई हैं.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... मोहनी मूरत देख 'शान्ति' सुध-बुध बिसराई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... विधना की न्यारी लीला लख मति चकराई है.गिरिजा पूजन सखियों संग सिया फुलबगिया आई हैं... *********** चलीं सिया गिरिजा पूजन को चलीं सिया गिरिजा पूजन को, देवी-देव मनात.तोरी शरण में आयी मैया, रखियो हमरी बात...
फुलबगिया के कुंवर सांवरे, मोरो चित्त चुरात.मैया, रखियो हमरी बात...
कुंवर सुकोमल, प्रण कठोर अति, मन मोरो घबरात.मैया, रखियो हमरी बात...
बीच स्वयम्वर अवध कुंवर जू, धनुष भंग कर पात.मैया, रखियो हमरी बात...
मिले वही जो मैया मोरे मन को भात सुहात.मैया, रखियो हमरी बात...
सिय उर-श्रद्धा परख उमा माँ, कर में पुष्प गिरात.मैया, रखियो हमरी बात...
पा माँ का आशीष, सुशीला सिय मन में मुस्कातमैया, रखियो हमरी बात...
सखी-सहेली समझ न पायीं, काय सिया हर्षात.मैया, रखियो हमरी बात...
'शान्ति' जुगल-जोड़ी अति सुंदर, जो देखे तर जात.मैया, रखियो हमरी बात... *********** मिथिला में सजी बरात मिथिला में सजी बरात, सखी! देखन चलिए... शंख मंजीरा तुरही बाजे, सजे गली घर द्वार.सखी! देखन चलिए... हाथी सज गए, घोड़ा सज गए, सज गए रथ असवार.सखी! देखन चलिए...
शिव-बिरंचि-नारद जी नभ से, देख करें जयकार.सखी! देखन चलिए...
रामजी की घोडी झूम-नाचती, देख मुग्ध नर-नार. सखी! देखन चलिए...
भरत-लखन की शोभा न्यारी, जनगण है बलिहार.सखी! देखन चलिए...
लाल शत्रुघन लगें मनोहर, दशरथ रहे दुलार.सखी! देखन चलिए...
'शान्ति' प्रफुल्लित हैं सुमंत जी, नाच रहे सरदार.सखी! देखन चलिए... *********** राम द्वारे आए धन धन भाग हमारे, राम द्वारे आए... हरे-हरे गोबर से अंगना लिपायो, मोतियन चौक पुराए.राम द्वारे आए... केसर से शुभ-लाभ लिखे हैं, जल गुलाब छिड़काये.राम द्वारे आए... नारि सुहागन कलश धरे हैं, पंचमुख दिया जलाये.राम द्वारे आए... स्वागत करतीं मातु सुनयना, आरती दिव्य जलाए.राम द्वारे आए... उमा रमा ब्रम्हाणी शारदा, मंगल गान गुंजाये.राम द्वारे आए... शुभाशीष प्रभु चित्रगुप्त का, ब्रम्हा हरि शिव लाये.राम द्वारे आए... परी अप्सरा छम-छम नाचें, देव वधूटी गायें.राम द्वारे आए... जगत पिता को जगजननी ने, जयमाल संकुच पहनाएं.राम द्वारे आए... नभ में हर्षित चाँद-सितारे, सूर्य न लख पछताए.राम द्वारे आए... हनुमत वाल्मीकि तुलसी संग 'शान्ति' विहंस जस गाये.राम द्वारे आए... नेह नर्मदा बहा रहे प्रभु, नहा परमपद पाए.राम द्वारे आए... *********** जनक अंगना में होती ज्योनार जनक अंगना में होती ज्योनार, जीमें बराती ले-ले चटखार... चांदी की थाली में भोजन परोसा, गरम-गरम लाये व्यंजन हजार. जनक अंगना में होती ज्योनार... आसन सजाया, पंखा झलत हैं, गुलाब जल छिडकें चाकर हजार. जनक अंगना में होती ज्योनार... पूडी कचौडी पापड़ बिजौरा, बूंदी-रायता में जीरा बघार. जनक अंगना में होती ज्योनार... आलू बता गोभी सेम टमाटर, गरम मसाला, राई की झार. जनक अंगना में होती ज्योनार... पलक मेथी सरसों कटहल, कुंदरू करोंदा परोसें बार-बार. जनक अंगना में होती ज्योनार... कैथा पोदीना धनिया की चटनी, आम नीबू मिर्ची सूरन अचार. जनक अंगना में होती ज्योनार... दही-बड़ा, काजू, किशमिश चिरौंजी, केसर गुलाब जल, मुंह में आए लार. जनक अंगना में होती ज्योनार... लड्डू इमरती पैदा बालूशाही, बर्फी रसगुल्ला,थल का सिंगार. जनक अंगना में होती ज्योनार... संतरा अंगूर आम लीची लुकात, जामुन जाम नाशपाती फल हैं अपार. जनक अंगना में होती ज्योनार... श्री खंड खीर स्वादिष्ट खाएं कैसे? पेट भरा, 'और लें' होती मनुहार. जनक अंगना में होती ज्योनार... भुखमरे आए पेटू बाराती, ठूंसे पसेरियों, गारी गायें नार. जनक अंगना में होती ज्योनार... 'समधी तिहारी भागी लुगाई, ले गओ भगा के बाको बांको यार.' जनक अंगना में होती ज्योनार... कोकिल कंठी गारी गायें, सुन के बाराती दिल बैठे हार. जनक अंगना में होती ज्योनार... लोंग इलायची सौंफ सुपारी, पान बनारसी रचे मजेदार. जनक अंगना में होती ज्योनार... 'शान्ति' देवगण भेष बदलकर, जीमें पंगत, करे जुहार. जनक अंगना में होती ज्योनार... *********** ठांडे जनक संकुचाएँ ठांडे जनक संकुचाएँ, राम जी को का देऊँ ?... हीरा पन्ना नीलम मोती, मूंगा माणिक लाल.राम जी को का देऊँ ? रेशम कोसा मखमल मलमल खादी के थान हजार.राम जी को का देऊँ ? कुंडल बाजूबंद कमरबंद, मुकुट अंगूठी नौलख हार.राम जी को का देऊँ ? स्वर्ण-सिंहासन चांदी का हौदा, हाथीदांत की चौकी.राम जी को का देऊँ ? गोटा किनारी, चादर परदे, धोती अंगरखा शाल.राम जी को का देऊँ ? काबुली घोडे हाथी गौएँ शुक सारिका रसाल.राम जी को का देऊँ ? चंदन पलंग, आबनूस पीढा, शीशम मेज सिंगार.राम जी को का देऊँ ? अवधपति कर जोड़ मनाएं, चाहें कन्या चार.राम जी को का देऊँ ? 'दुल्हन ही सच्चा दहेज़ है, मत दे धन सामान.'राम जी को का देऊँ ? राम लक्ष्मण भरत शत्रुघन, देन बहु विध सम्मान.राम जी को का देऊँ ? शुभाशीष दें जनक-सुनयना, 'शान्ति' होंय बलिहार.राम जी को का देऊँ ? *********** चलीं जानकी प्यारी चलीं जानकी प्यारी, सूना भया जनकपुर आज... रोएँ अंक भर मातु सुनयना, पिता जनक बेहाल.सूना भया जनकपुर आज... सखी-सहेली फ़िर-फ़िर भेंटें, रखना हमको याद.सूना भया जनकपुर आज... शुक-सारिका न खाते-पीते, ले चलो हमको साथ.सूना भया जनकपुर आज... चारों सुताओं से कहें जनक, रखना दोउ कुल की लाज.सूना भया जनकपुर आज... कहें सुनयना भये आज से, ससुर-सास पितु-मात.सूना भया जनकपुर आज... गुरु बोलें: सबका मन जीतो, यही एक है पाठ.सूना भया जनकपुर आज... नगरनिवासी खाएं पछाडें, काहे बना रिवाज.सूना भया जनकपुर आज... जनक कहें दशरथ से 'करिए क्षमा सकल अपराध.सूना भया जनकपुर आज... दशरथ कहें-हैं आँख पुतरिया, रखिहों प्राण समान.सूना भया जनकपुर आज... *********** द्वारे बहुरिया आई द्वारे बहुरिया आई, सुनत जननी उठ धाई... ताजे गोबर से आँगन लिपायो, अक्षत-चौक पुराई.द्वारे बहुरिया आई... आरती-थाल सजाय सुमित्रा, कैकेई दीप जलाई.द्वारे बहुरिया आई... पछान करतीं मातु कौशल्या, घंटा-शंख बजाई.द्वारे बहुरिया आई... चूमें आनन्, लेंय बलैंयाँ, बहें ह्रदय लगाईं.द्वारे बहुरिया आई... ननद-सहेली कंगन खुलावें, कुल देवता पुजाई.द्वारे बहुरिया आई... निरख-निरख छवि बहु-बेटन की, मियाँ बलि-बलि जाई.द्वारे बहुरिया आई... विधि-हर राखो कुशल हमारी, मन्नत मातु मनाई.द्वारे बहुरिया आई... जुगल जोड़ी मोहे दर्शन दीजो, प्रभु से 'शान्ति' मनाई.द्वारे बहुरिया आई...
*********** आयी सिया ससुराल आयी सिया ससुराल, बिदा हो नैहर से.अंगना हो मंगलाचार, ढोल शहनाई बजे... तीन सास आरती उतारें, बहुएं आयीं चार. बिदा हो नैहर से.... स्वर्गोपम सुषमा है अवध की, सजा नगर घर द्वार. बिदा हो नैहर से.... मुख देखें कौशल्या माता, दें हीरों के हार. बिदा हो नैहर से.... मातु कैकेई दीन्हें कंगन, जड़े नीलम-पुखराज. बिदा हो नैहर से.... मैया सुमित्रा अंक भर भेंटें, बाजूबंद जड़े लाल. बिदा हो नैहर से.... राजा दशरथ करें निछावर, मोहरें सर पर वार. बिदा हो नैहर से.... गुरु वशिष्ठ आशीष लुटाएं, देना कुल उजियार. बिदा हो नैहर से.... विश्वामित्र कहें: हो लक्ष्मी, जग की पालनहार. बिदा हो नैहर से.... मंत्री सुमंत्र कहें: जनता की, माँ हो राखनहार. बिदा हो नैहर से....
ननद शांता भुज भर भेंटी, तुम पर हम बलिहार. बिदा हो नैहर से....
सेवक, अनुचर करते वंदन 'शान्ति' रखे करतार. बिदा हो नैहर से.... *********** होली खेलें सिया की सखियाँ होली खेलें सिया की सखियाँ, जनकपुर में छायो उल्लास.... रजत कलश में रंग घुले हैं, मलें अबीर सहास. होली खेलें सिया की सखियाँ... रंगें चीर रघुनाथ लला का, करें हास-परिहास. होली खेलें सिया की सखियाँ... एक कहे: 'पकडो, मुंह रंग दो, निकरे जी की हुलास.' होली खेलें सिया की सखियाँ... दूजी कहे: 'कोऊ रंग चढ़े ना, श्याम रंग है खास.' होली खेलें सिया की सखियाँ... सिया कहें: ' रंग अटल प्रीत का, कोऊ न अइयो पास.' होली खेलें सिया की सखियाँ... सियाजी, श्यामल हैं प्रभु, कमल-भ्रमर आभास. होली खेलें सिया की सखियाँ... 'शान्ति' निरख छवि, बलि-बलि जाए, अमिट दरस की प्यास. होली खेलें सिया की सखियाँ... *********** होली खेलें चारों भाई होली खेलें चारों भाई, अवधपुरी के महलों में... अंगना में कई हौज बनवाये, भांति-भांति के रंग घुलाये.पिचकारी भर धूम मचाएं, अवधपुरी के महलों में... राम-लखन पिचकारी चलायें, भारत-शत्रुघ्न अबीर लगायें.लखें दशरथ होएं निहाल, अवधपुरी के महलों में... सिया-श्रुतकीर्ति रंग में नहाई, उर्मिला-मांडवी चीन्ही न जाई.हुए लाल-गुलाबी बाल, अवधपुरी के महलों में... कौशल्या कैकेई सुमित्रा, तीनों माता लेंय बलेंयाँ.पुरजन गायें मंगल फाग, अवधपुरी के महलों में... मंत्री सुमंत्र भेंटते होली, नृप दशरथ से करें ठिठोली.बूढे भी लगते जवान, अवधपुरी के महलों में... दास लाये गुझिया-ठंडाई, हिल-मिल सबने मौज मनाई.ढोल बजे फागें भी गाईं,अवधपुरी के महलों में... दस दिश में सुख-आनंद छाया, हर मन फागुन में बौराया.'शान्ति' संग त्यौहार मनाया, अवधपुरी के महलों में...
*********** वन को चले रघुवीर बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर... आगे राम, बीच में सीता, पीछे हैं लछमन वीर.बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर... मातु कौशल्या खाएं पछाडें, बहे नयन से नीर.बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर... मातु सुमित्रा गुम-सुम डोलें, देतीं सबको धीर.बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर... राजा दशरथ व्याकुल-मूर्छित, सही न जाए पीर.बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर... रोएँ पुर नगर पुर वासी, जुटी राह में भीर.बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर... नज़र लगी क्यों चैन-'शान्ति'को, गुरुवार अति गंभीर.बिदा हो अवध से, वन को चले रघुवीर...
*********** तिलक करें रघुवीर तुलसी चित्रकूट में घिसते चंदन, तिलक करें रघुवीर... राम दरस की लगी लालसा, हो रहे प्राण अधीर.किस पल प्रभु के दर्शन पाऊँ, तभी मिटेगी पीर... सुग्गा रूप धरो हनुमत ने, आए गंगा-तीर.डाली ऊपर किया इशारा, जय लछमन रघुवीर... गद-गद गिरे ईश-चरणों में, बहे नयन से नीर.'शान्ति' जाए बलिहार पवनसुत, मिला दिए रघुवीर... *********** मिला राम नाम गले का हरवा मिला राम नाम गले का हरवा... श्रद्धा की बिंदी सजा भाल पे,शील का नैनों में आंज कजरवा... सेवा की मेंहदी रचा हाथ में, नेह के कर मां सोहे कंगनवा... लाज की पचरंग चूनर है धानी,सत्संग का है लाल घघरवा... भक्ति के नूपुर बाँध पगन में,मन का मयूरा गए कहरवा... ह्रदय सिंघासन हरी बिराजे,तन पावन हो बना मंदिरवा... ज्ञान की चाबी गुरूजी दीनी,'शान्ति' से खोलो ध्यान किवरवा... तर जाओगे भव सागर से,नित विश्वास का रोपो बिरवा... *********** रामजी आए हमरे द्वार रामजी आए हमरे द्वार, न सूझे कैसे करुँ सत्कार?... ह्रदय सिंहासन प्रभु जी खाली, आओ बिराजो श्री धनुर्धारी.स्नेह सलिल से चरण पखार, न सूझे कैसे करुँ सत्कार?... सांवरी सूरत, मोहिनी मूरत, तरसें दरस को सुर नर मुनिजन.झलक दिखा दो जनम सुधार, न सूझे कैसे करुँ सत्कार?... पलक पांवडे रहे बिछाए, जूठे बेर तुम्हें मन भाए.तुम्हीं 'शान्ति' के हो रखवार, न सूझे कैसे करुँ सत्कार?... *********** बहे राम रस गंगा बहे राम रस गंगा, करो रे मन सतसंगा.मन को होत अनंदा, करो रे मन सतसंगा... राम नाम झूले में झूली, दुनिया के दुःख झंझट भूलो.हो जावे मन चंगा, करो रे मन सतसंगा... राम भजन से दुःख मिट जाते, झूठे नाते तनिक न भाते.बहे भाव की गंगा, करो रे मन सतसंगा... नयन राम की छवि बसाये, रसना प्रभुजी के गुण गाये.तजो व्यर्थ का फंदा, करो रे मन सतसंगा... राम नाव, पतवार रामजी, सांसों के सिंगार रामजी.'शान्ति' रहे मन रंगा, करो रे मन सतसंगा... ********** चल मन सीता-राम की शरण चल मन सीता-राम की शरण, सुबह-शाम सिया-राम का भजन... भाई, बहिन, बहू, सुत, नाती, तात-मात, पिया, सखा-संगाती.रिश्ते-नाते मन का भरम, चल मन सीता-राम की शरण... रुपया, गहना, महल, अटारी, बाग़, बगीचा, मोटर, गाड़ी.व्यर्थ हुए हैं लाख जतन, चल मन सीता-राम की शरण... माया-मोह-भोग की तृष्णा, प्यास अमिट, मन-तृप्ति मिले ना.संयम है अनमोल रतन, चल मन सीता-राम की शरण... शौक लगे सौ, लगे भटकने, खाने-पीने, नाच-मटकने.कबहूँ ना मिटे, लगी भोग अगन, चल मन सीता-राम की शरण... आया बुढापा, शिथिल हो गात, सीधे मुंह कोई करे न बात.ठोंक रहे निज हाय करम, चल मन सीता-राम की शरण... करुणासागर पार लगाएं, भटकों को मंजिल पहुंचाएं.चरण पकड, कर नहीं शरम, चल मन सीता-राम की शरण... जब जो आए प्रभु की शरण में, आनंद मिलता तन में-मन में.'शान्ति' मिले हो सफल जनम, चल मन सीता-राम की शरण... *********** रघुवर की कृपा हो जाती है जिस घर में रामायण होती है, रघुवर की कृपा हो जाती है.सब रोग-शोक मिट जाते हैं, सब पीर-व्यथा खो जाती है. रघुवर की कृपा हो जाती है... विश्वास रखो अपने मन में, संतोष करो नित जीवन में.मर्यादा का पालन करना, 'मानस ही हमें सिखाती है. रघुवर की कृपा हो जाती है... सुखमय जीवन जीना चाहो, दुःख पर जय पा जीना चाहो.प्रति दिन 'मानस का पाठ करो, प्रभु-छवि उर में बस जाती है. रघुवर की कृपा हो जाती है... कीचड़ में कमल बने रहना, सारे सुख-दुःख हँसकर सहना.कर काम सभी निष्काम सदा, भव से मुक्ति मिल जाती है. रघुवर की कृपा हो जाती है... शबरी बन प्रभु का ध्यान धरे, क्यों वृथा गर्व-अभिमान करे.निज आत्म तभी परमात्म बने, जब प्रेम-गली खुल जाती है. रघुवर की कृपा हो जाती है... हर पल प्रभु ध्यान तुम्हारा हो, आख़िर में तुम्हीं सहारा हो.दम राम-राम कहते निकले, 'शान्ति' यह विनय सुनाती है. रघुवर की कृपा हो जाती है... *********** तुम्हारे संग वन को तुम्हारे संग वन को मैं भी चलूंगी रघुवीर.यही विनय है अवध में हमको छोडो न पिया रघुवीर... जब स्वामी तुम्हें भूख लगेगी, कन्द-मूल परसूं दे धीर. तुम्हारे संग वन को... जब रघुपति तुम्हें प्यास लगेगी, निर्मल पिलाऊंगी नीर. तुम्हारे संग वन को... जब रघुनन्दन नींद सताए, सेज सजाऊँ बिछा चीर. तुम्हारे संग वन को... चलत-चलत प्रभु थक जाओ तो, चरण चाप हरु पीर. तुम्हारे संग वन को.. 'शान्ति' निरख मुखचन्द्र प्रभु का, हिरदा न हुईहै अधीर. तुम्हारे संग वन को... ********** शिवजी की आयी बरात शिवजी की आयी बरात, चलो सखी देखन चलिए... भूत प्रेत बेताल जोगिनी' खप्पर लिए हैं हाथ.चलो सखी देखन चलिए शिवजी की आयी बरात.... कानों में बिच्छू के कुंडल सोहें, कंठ में सर्पों की माला.चलो सखी देखन चलिए शिवजी की आयी बरात.... अंग भभूत, कमर बाघम्बर' नैना हैं लाल विशाल. चलो सखी देखन चलिए शिवजी की आयी बरात.... कर में डमरू-त्रिशूल सोहे, नंदी गण हैं साथ.शिवजी की आयी बरात, चलो सखी देखन चलिए... कर सिंगार भोला दूलह बन के, नंदी पे भए असवार. शिवजी की आयी बरात, चलो सखी देखन चलिए... दर्शन कर सुख-'शान्ति' मिलेगी, करो रे जय-जयकार. शिवजी की आयी बरात, चलो सखी देखन चलिए... *********** गिरिजा कर सोलह सिंगार गिरिजा कर सोलह सिंगार चलीं शिव शंकर हृदय लुभांय... मांग में सेंदुर, भाल पे बिंदी, नैनन कजरा लगाय.वेणी गूंथी मोतियन के संग, चंपा-चमेली महकाय. गिरिजा कर सोलह सिंगार... बांह बाजूबंद, हाथ में कंगन, नौलखा हार सुहाय.कानन झुमका, नाक नथनिया, बेसर हीरा भाय. गिरिजा कर सोलह सिंगार... कमर करधनी, पाँव पैजनिया, घुँघरू रतन जडाय.बिछिया में मणि, मुंदरी मुक्ता, चलीं ठुमुक बल खांय. गिरिजा कर सोलह सिंगार... लंहगा लाल, चुनरिया पीली, गोटी-जरी लगाय.ओढे चदरिया पञ्च रंग की , शोभा बरनि न जाय. गिरिजा कर सोलह सिंगार... गज गामिनी हौले पग धरती, मन ही मन मुसकाय.नत नैनों मधुरिम बैनों से अनकहनी कह जांय. गिरिजा कर सोलह सिंगार... ********** मोहक छटा पार्वती-शिव की मोहक छटा पार्वती-शिव की देखन आओ चलें कैलाश.... ऊँचो बर्फीलो कैलाश पर्वत, बीच बहे गैंग-धार. मोहक छटा पार्वती-शिव की... शीश पे गिरिजा के मुकुट सुहावे भोले के जटा-रुद्राक्ष. मोहक छटा पार्वती-शिव की... माथे पे गौरी के सिन्दूर-बिंदिया शंकर के नेत्र विशाल. मोहक छटा पार्वती-शिव की...... उमा के कानों में हीरक कुंडल, त्रिपुरारी के बिच्छू कान मोहक छटा पार्वती-शिव की..... कंठ शिवा के मोहक हरवा, नीलकंठ के नाग. मोहक छटा पार्वती-शिव की...... हाथ अपर्णा के मुक्ता कंगन, बैरागी के डमरू हाथ. मोहक छटा पार्वती-शिव की... सती वदन केसर-कस्तूरी, शशिधर भस्मी राख़. मोहक छटा पार्वती-शिव की..... महादेवी पहने नौ रंग चूनर, महादेव सिंह-खाल. मोहक छटा पार्वती-शिव की...... महामाया चर-अचर रच रहीं, महारुद्र विकराल. मोहक छटा पार्वती-शिव की...... दुर्गा भवानी विश्व-मोहिनी, औढरदानी उमानाथ. मोहक छटा पार्वती-शिव की... 'शान्ति' शम्भू लख जनम सार्थक, 'सलिल' अजब सिंगार. मोहक छटा पार्वती-शिव की... भोले घर बाजे बधाई मंगल बेला आयी, भोले घर बाजे बधाई ... गौर मैया ने लालन जनमे, गणपति नाम धराई. भोले घर बाजे बधाई ... द्वारे बन्दनवार सजे हैं, कदली खम्ब लगाई. भोले घर बाजे बधाई ... हरे-हरे गोबर इन्द्राणी अंगना लीपें, मोतियन चौक पुराई. भोले घर बाजे बधाई ... स्वर्ण कलश ब्रम्हाणी लिए हैं, चौमुख दिया जलाई. भोले घर बाजे बधाई ... लक्ष्मी जी पालना झुलावें, झूलें गणेश सुखदायी. भोले घर बाजे बधाई ... नृत्य करें गणराज झूमकर, नारद वीणा बजाई. भोले घर बाजे बधाई ... देव-देवियाँ सोहर गायें, खुशियाँ त्रिभुवन छायीं. भोले घर बाजे बधाई ... भोले बाबा हैं बैरागी, लाल कहाँ से ले आयीं? भोले घर बाजे बधाई ... सब सखियाँ मिल करें ठिठोली, गौरा झेंप-खिजायीं. भोले घर बाजे बधाई ... तीन लोक में शगुन हो रहे, भोला-तप फलदायी. भोले घर बाजे बधाई ... प्रभु गणपति सुख-शान्ति प्रदाता, असुरन मार भगाई. भोले घर बाजे बधाई ... *********** धूम धाम भोले के गाँव
धूम धाम भोले के गाँव, चलो पाँव-पाँव सखी... कौन दिसा मां?, कैसे जावें? कहाँ बसा भोले का गाँव? चलो पाँव-पाँव सखी... उत्तेर दिसा मां कैलास पर्वत, बरफ बीच भोले का गाँव. चलो पाँव-पाँव सखी... कहो कौन के लालन भये हैं?, का है पिता को नाम? चलो पाँव-पाँव सखी... गौर के सखी भये लालना, शिव है पिता जी को नाम. चलो पाँव-पाँव सखी... कल्प वृक्ष पे झूला डलो है, अमर बेल है डोर. चलो पाँव-पाँव सखी... झूलें गजानन शिवजी झुलावें, नंदी त्रिलोक घुमाएँ. चलो पाँव-पाँव सखी... भूत पिशाच जोगिनी नाचें, पहने गले मुंड-माल. चलो पाँव-पाँव सखी... ब्रम्हा-विष्णु दरश को आए, बांच न पाये भाग. चलो पाँव-पाँव सखी... दसों दिशा में चैन-'शान्ति' है, प्रभु की कृपा अपार. चलो पाँव-पाँव सखी... *********** मनभावन मुरली बजाओ कन्हैया मनभावन मुरली बजाओ कन्हैया जमुना तट रस रचाओ कन्हैया... सूना नन्द बाबा का अंगना, नटखट खेल खिलाओ कन्हैया... मां जसुमति खीझें न रीझें, माखन तनिक चुराओ कन्हैया... तुझ पर तन-मन-जीवन वारा, गुपियाँ झलक दिखाओ कन्हैया... रिश्ते-नाते, मन भरमाते, मोह-जाल छुड़वाओ कन्हैया... माया तृष्णा शंका घेरे, गीता-ज्ञान सुनाओ कन्हैया... प्यास दरश की करती व्याकुल, मन-मथुरा बस जाओ कन्हैया... 'शान्ति' विनय- दो भक्ति अटल अब, नैया पर लगाओ कन्हैया... ********* हरि को बन्ना बनावें हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... कमलनयन में कजरा लगावें, मीठी-मीठी करें बतियाँ. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... कान्हा को कण में कुंडल पिन्हावें, नाक सुहाए नथुनिया. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... हरि को पान का बीडा खिलावें, लगते अधर कमल कलियाँ. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... किशन-कंठ में हार सुहाए, बांह बाजूबंद नौनगिया. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... दोउ तन मां कंगना बांधे, मेंहदी रचाएं रंगीली सखियाँ. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... धोकर पैर खडाऊं पिन्हावें, पहने न- छेड़ें गोपाल रसिया. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... अंग सजाये धोती-अंगरखा, श्याम-पीट छवि भली बनिया. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... शीश मोर का मुकुट सजावें, बेला चमेली जुही की कलियाँ. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... वनमाली है चित्त-चुरैया, 'शान्ति' पांय सबकी अँखियाँ. हरि को बन्ना बनावें, गोकुल की गुपियाँ... ********* चरणों में अपने बुला लेना हे श्यामसुंदर! हे मनमोहना!!, चरणों में अपने बुला लेना.
कर नजर दयामय मधुसूदन, मनभावन झलक दिखा देना... नन्दलाल मैं तेरी सेवा करुँ, तेरी सांवरी सूरत दिन में धरूँ.
न्योछावर माधुरी मूरत पर, चरणों में शरण सदा देना... नयनों को तेरा ही ध्यान रहे, कानों में गुंजित गान रहे.
मम हृदय में तेरा ही धाम रहे, भवसागर पार करा देना... तुम चक्र सुदर्शनधारी हो, वनमाली हो बनवारी हो.
गोपाल कृष्ण नटवर गिरिधर मुरली की तान सुना देना... भारत में फ़िर प्रभु आ जाओ, गीता का ज्ञान करा जाओ.
जन गण के मन में बीएस जाओ, सुख 'शान्ति' अमृत बरसा देना... ********* हे करुणासिन्धु भगवन! हे करुणासिन्धु भगवन! तुम प्रेम से मिल जात हो.
श्याम सुंदर सांवरे दो दरस, क्यों तड़फात हो? द्रौपदी की विनय सुन, धाये थे सब को छोड़कर.
प्रेम से हे नाथ! तुम भी, भक्तवश हो जात हो. भगत धन्ना जाट की, खाई थी रूखी रोटियां.
ग्वाल-बल साथ मिल, माखन भी प्रभु चुरात हो. संसार के कल्याण-हित, मारा था प्रभु ने कंस को.
भक्त को भवसागरों से, पार तुम्हीं लगात हो. 'शान्ति' हो बेआसरा, डीएम तोड़ती मंझधर में.
है आस तुम्हारे दरस की, काहे न झलक दिखात हो. ********* श्यामसुंदर नन्दलाल श्यामसुंदर नन्दलाल अब दरस दिखाइये. तरस रहे प्राण इन्हें और न तरसाइए... त्याग गोकुल और मथुरा जाके द्वारिका बसे. सुध बिसारी कहे हमरी, ऊधोजी बताइए... ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें. गोपियाँ सारी दुखारी, बंसरी बजाइए... टेरती जमुना की, फूले ना कदम्ब टेरे. खो गए गोपाल कहाँ? दधि-मखन चुराइए... हे सुदामा! कृष्ण जी को हाल सब बताइये. 'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये... ********* सत्याग्रह करने चलो सब सत्याग्रह करने, चलो अब सत्याग्रह करने... सत्याग्रह कर पाप काटने, पुण्य अमित वरने. चलो अब सत्याग्रह करने... बाँध गुलामी का टूटे, आजाद देश करने. चलो अब सत्याग्रह करने... बडभागी हो फूट मिटा, एकता राह वरने. चलो अब सत्याग्रह करने... भारत मां के श्री चरणों में शीश भेंट करने. चलो अब सत्याग्रह करने... बापूजी का हाथ बटाने, गोरों से लड़ने. चलो अब सत्याग्रह करने... बन सुभाष के साथी, बढ़ इतिहास नया रचने. चलो अब सत्याग्रह करने... भारत मां के अश्रु पोंछ, जन मत जाग्रत करने. चलो अब सत्याग्रह करने... ********* बापू जी आए नगरिया सुनो री गुइयाँ!, बापू जी आए नगरिया... बापूजी जन-जन के नायक, बोलें सच-सच बतियाँ.सुनो री गुइयाँ!, बापू जी आए नगरिया... बापूजी के जैसा त्यागी जग में कोऊ नईयां.सुनो री गुइयाँ!, बापू जी आए नगरिया... बापू का हथियार है चरखा, काटें दोउ बिरियाँ.सुनो री गुइयाँ!, बापू जी आए नगरिया... बापू संग सुभाष-जवाहर, डरे सकल दुनिया.सुनो री गुइयाँ!, बापू जी आए नगरिया... चल फहराएं तिरंगा झंडा, 'शान्ति' संग सैयां.सुनो री गुइयाँ!, बापू जी आए नगरिया...
********* निकष पर : 'राम नाम सुखदायी'
( समीक्ष्य कृति : राम नाम सुखदायी, श्रीमती शान्ति देवी वर्मा, २१ रु., पृष्ठ ६२, संस्करण : प्रथम १९९९, द्वितीय २००९, अभियान प्रकाशन जबलपुर. ) 'राम नाम सुखदायी' : स्वागतयोग्य कृति स्व. के. बी. सक्सेना वरिष्ठ व्यंग्यकार-समीक्षक, से.नि.प्राचार्य, उपसंचालक शिक्षा विभाग भक्ति साहित्य में 'राम नाम सुखदाई' एक स्वागतयोग्य कृति श्रीमती शान्ति देवी वर्मा द्वारा प्रस्तुत की गयी है. इसमें प्रमुखतः भगवन श्री राम, श्री कृष्ण एवं महादेव शिव की स्तुति एवं महामा का गायन किया गया है. इस कृति को पढ़कर सहज ही मीरां बाई, सहजो बाई सगातास्व भजनों का स्मरण हो आया. हाँ, इस कृति में खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है परन्तु कुछ रचनाओं में बुन्देलखंडी एवं अवधी का भी प्रयोग किया गया है जो सहज और स्वाभाविक बन पड़ा है. यथा- ठांडे जनक संकुचाएँ, राम जी को का देऊँ ?... गोटा किनारी, चादर परदे, धोती अंगरखा शाल. राम जी को का देऊँ ? अथवा - बाजे अवध बधैया, हाँ हाँ बाजे अवध बधैया... मोद मगन नर-नारी नाचें, नाचें तीनों मैया. हाँ-हाँ नाचें तीनों मैया, बाजे अवध बधैया.. इस पुस्तक में सभी भजन भक्तजनों के मध्य सुमधुर धुनों में गाने योग्य हैं. इनमें जहाँ एक ओर भक्त की विनम्रता, सरलता और समर्पण की मधुर झांकी है, वहीं परब्रम्ह के सगुण स्वरुप की अत्यन्त मधुर प्रस्तुतियां हैं. 'राम नाम सुखदाई' में श्रीमती वर्मा की कुल ३७ रचनाएँ प्रसिद्ध साहित्य मनीषी संजीव 'सलिल' द्वारा संपादित की गयी हैं.पुस्तक सर्वथा संग्रहणीय है. भक्त ह्रदय की पुकार 'राम नाम सुखदायी'
डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' विभागाध्यक्ष हिन्दी, एस. आर. के. महाविद्यालय, फीरोजाबाद
सृष्टि को संचालित करनेवाली परमशक्ति के साथ भावात्मक सम्बन्ध और तन्मयता का ही नाम भक्ति है. भक्त अपने आराध्य के साथ गहरी आत्मीयता का अनुभव करता है. भक्ति के आवेग में वह अपने आपको प्रभु से एकाकार भी कर लेता है. अभियान प्रकाशन जबलपुर द्वारा प्रकाशित श्री संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित 'राम नाम सुखदायी' श्रीमती शान्ति देवी वर्मा सृजित भावपूर्ण आत्म-विभोर करनेवाले भक्ति गीतों का संग्रह है. ६२ पृष्ठ की इस पुस्तिका में भगवान राम, शिव और श्री कृष्ण की भक्ति के भजन हैं. इन भजनों में भक्त ह्रदय का दैन्य, आत्म निवेदन, प्रभु की लीलाओं का गायन, नाम संकीर्तन और विनय आदि भक्ति के सभी तत्व उपलब्ध हैं. प्रारम्भ में सम्पादक श्री सलिल ने कायस्थों के कुल देवता चित्रगुप्तजी की वन्दना की है. कवि ने चिन्तन की गहरी सरिता में गोटा लगाकर यह विचार रत्न प्राप्त किया है कि चित्रगुप्त शब्द वस्तुतः ब्रम्ह का वाचक ही, जो निराकार है वह चित्रगुप्त है और जो प्राणी कि काया में स्थित (कायस्थ) है वाही आत्मा सच्चा कायस्थ है. कण-कण में जो चित्र गुप्त है, वह ही सच्चा चित्रगुप्त है. कायस्थ है काया में स्थित आत्मा महिमावान.. मिटने भक्तों के दुःख-दर्द जगत में आते श्री भगवान. -- पृष्ठ ११. श्रीमती शान्ति देवी के पास एक संवेदनशील और समर्पित भक्त का ह्रदय है, गीतकार की शब्द योजना है औरलोक गीतकार की कला है. इसीलिये कभी वे प्रभु की लीलाओं के गायन में अपने आपको आत्म विभोर करती दिखई पड़ती हैं और कभी प्रभु के सम्मुख विनम्र होकर अपने अपराधों की क्षमा मांगती हैं.वे लोक संस्कारों और लोक संस्कृति से पूरी तरह परिचित हैं. इसीलिये वे जनक को सीता की विदा के समय दहेज़ में दी जानेवाली वस्तुओं के लिए संचुचित होते हुए दिखाती है परन्तु आज जब दहेज़ दानव की विकराल बांहों में असंख्य बालिकाएं पिस चुकी हैं तो भला उनके आराध्य राम के पिता दहेज़ कैसे स्वीकार सकते हैं- ठांडे जनक संकुचाएँ, राम जी को का देऊँ ?... अवधपति कर जोड़ मनाएं, चाहें कन्या चार. राम जी को का देऊँ ? 'दुल्हन ही सच्चा दहेज़ है, मत दें धन सामान.' राम जी को का देऊँ ? - पृष्ठ २८ प्रारम्भ के लगभग २३ गीतों में राम भक्ति की भावनाएं प्रगट हुई हैं, ५ गीतों में शिव भक्ति के भावः हैं और ५ गीत कृष्ण भक्ति के हैं. सभी ह्बजं गे हैं. कवयित्री वस्तु-वर्णन में विशेष कुशल हैं. उदाहरण के लिए 'जंक अंगना में होती ज्योनार' गीत में भोजन की विविध सामग्रियों के नाम गिनाये गए हैं- कैथा पोदीना धनिया की चटनी, आम नीबू मिर्ची सूरन अचार. जनक अंगना में होती ज्योनार... पृष्ठ २५ कुल मिलाकर इन भक्तिपरक गीतों में सच्चे भक्त ह्रदय की भावनाओं को वाणी दी गयी है. पुस्तक भक्तों में पठनीय और गेय है. शैली की दृष्टि से ये लोक गीतों के सगोत्री हैं. ये बहुत जल्दी जुबान पर चढेंगे. इनकी सहजता ही इनकी असाधारणता है. - ८६ तिलक नगर, बायपास मार्ग, फिरोजाबाद कलकंठीयों के गले का हार पं. गिरिमोहन गुरु गोस्वामी सेवाश्रम, नर्मदा मंदिरम सम्पादक सेवाश्रम संदेश होशंगाबाद ४६१००१, २०-१-१९९९ कलि के कविन करऊँ परनामा . जिन बरने रघुपति गुनग्रामा. भक्तिमती श्रीमती शान्ति देवी 'शान्ति' कृत भजन संग्रह 'राम नाम सुखदायी' उनके आत्मज, प्रदेश के प्रसिद्द साहित्यकार श्री सलिल द्वारा संपादित ६२ पृष्ठीय, ३३ भजनों वाली कृति प्राप्तकर सुख और शान्ति दोनों प्राप्त की. भजनों में जहाँ भक्त ह्रदय की करुणा तथा सहजता है, वहीं क्षेत्रीय बोली बुन्देली का लोक शौष्ठव यत्र-तत्र बिखरा है. इन भजनों को विशेष रूप से महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले लोक भजनों एवं धार्मिक लोक गीतों की श्रेणी में शामिल किया जा सकता है. कृति के समर्पण में गुरुदेव युगतुलसी का काव्य-स्मरण एवं आधुनिक मीरा महादेवी को काव्य-नमन कृति की महत्ता बढ़ाने में सहायक है. यों तो सभी छंद मन भावन हैं फ़िर भी जिन्होंने अधिक प्रभावित किया वे हैं : सुनो री गुइयां, सिया फुलबगिया आयी हैं, मिथिला में सजी बारात, ज्योनार, चली जानकी प्यारी, होली खेलें सिया की सखियाँ, तिलक करें रघुवीर, मोहक छटा पार्वती-शिव की आदि प्रमुख हैं. रचनाएँ क्या हैं, कलकंठीयों के गले का हार हैं. ऐसी रचनाएं तभी लिखी जाती हैं जब 'रघुवर की कृपा हो जाती है.' भक्ति भावः से प्लावित 'राम नाम सुखदाई' डिहुर राम निर्वाण 'प्रतप्त' वरिष्ठ कवि साहित्य समाज का दर्पन है जो भावनाओं से उत्पन्न छंद, स्वर, ले, अलंकार आदि के मध्यम से साहित्यकार के मानस का परिद्रश्य प्रतिबिंबित करता है जिसमें समय के साथ सामाजिक, राजनैतिक राष्ट्रहित की भावना के साथ आध्यात्मिकता समाहित होती है.. साहित्य समय व् परिवेश पर केंद्रित होकर दिशा निर्देश करता है. वैचारिक विभिन्नता जनित अनिश्चितता में अनाचार-अत्याचार का प्रादुर्भाव स्वाभाविक है. विविध वैचारिक मार्गों के होते हुए भी समही की मंजिल एक होती है. इसे प्रदर्शित करने तथा आत्मिक शान्ति की स्थापना के लिए भगवत भजन माला ही सारभूत संबल है. वर्तमान परिवेश में 'राम नाम सुखदाई' निश्चय ही जन भावनाओं को भारतीय संस्कृति की ओर अनुप्राणित करने में समर्थ है. इसमें चित्रगुप्त भगवन की वन्दना के साथ रामायण के प्रसंगों के आधार पर मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बाल लीलाओं से विवाह तक के प्रसंगों को भजन रूप में प्रस्तुत कर मानवीय पक्ष को जन भावनाओं से जोड़ने का सराहनीय प्रयास किया गया है. भगवान राम, शव एवं मुरली मनोहर कृष्ण के प्रति भक्ति भावः प्लावित रचनाओं 'रघुवर की कृपा हो जाती है' - भजन क्र. २६, 'चरणों में अपने' भजन क्र. ३५, 'श्याम सुंदर नन्दलाल' भजन क्र. ३७ आदि में आध्यात्म एवं शान्ति के पथ पर अभिलाषाओं को तिरोहित करने का आव्हान है. कृति सर्जक श्रीमती शान्ति देवी व् सम्पादक इं. संजीव 'सलिल' का प्रयास सराहनीय है.
मर्मस्पर्शी आनंददायी भजन संग्रह 'राम नाम सुखदायी' सुभाष पांडे कवि - कथाकार भजन का जन्म अपने आराध्य के प्रति भक्ति भावना से होता है. मन वीणा के तार जब झंकृत होकर शब्द और स्वर के साथ निनादित होते हैं तो वे आत्म को परमात्म से मिलाने में सहायक होते हैं. ऐसे भजनों की समीक्षा नहीं की जा सकती. वर्तमान भौतिकवादी युग में संपूर्ण मानव समाज नश्वर तन के सुख की चाह में भ्रमित होकर भटक रहा है पर उसे सुख, शान्ति और आनंद क्यों नहीं मिलता ? शायद इसलिए कि सुख, शान्ति और आनंद आत्मा की कोख से प्रस्फुटित होते हैं. इस रहस्य को जो जान लेता है वह परम्ब्रम्ह में लीं हो जाता है, उसकी आत्मा से उपजे शब्द भजन के रूप में जगत का कल्याण करते हैं. पूज्या मातुश्री श्रीमती शान्ति देवी का यह भजन संग्रह कदाचित उनकी आत्मा से स्फुटित स्वर लहरी है. इसमें उनहोंने भगवान राम के जन्म और जीवन से जुड़े प्रसंगों को व्यक्त किया है. 'अवध में जन्मे हैं श्रीराम', 'बाजे अवध बधैया', 'सिया फुल बगिया आई हैं', 'चली सिया गिरिजा पूजन को', 'मिथिला में सजी बारात', राम द्वारे आए', 'जनक अंगना में होती ज्योनार', ठांडे जनक संकुचाएँ', 'चलीं जानकी प्यारी', आदि भजन भक्तों को आनंद विभोर करेंगे. कुछ भजनों में भगवान राम के आध्यात्मिक स्वरुप का मार्मिक चित्रण है. 'राम नाम गले का हरवा', 'बहे राम रस गंगा', 'चल मन सीता-राम की शरण' तथा 'रघुवर की कृपा हो जाती है' आदि में विराग भावः की प्रधानता है. भगवान राम, शिव या कृष्ण सभी के प्रति भजनकार की समान श्रद्धा है. 'शिव जी की आयी बारात', 'गिरिजा कर सोलह सिंगार', 'मन भावन मुरली', 'श्याम सुंदर नन्दलाल'आदि भजन भक्तिभाव में तत्व ज्ञान के द्योतक हैं. सामान्यतः भक्तिमार्गी केवल निज इष्ट के प्रति समर्पित होता है. एक बार मथुरा जनर पर संत तुलसीदास ने कृष्ण मन्दिर में कहा था- 'कहा कहों छवि आपकी भले बने हो नाथ. तुलसी मस्तक तब नवे धनुष-बान लो हाथ.' माताजी अपवाद हैं. वे कण-कण में भगवान को देखती हैं. 'राम नाम सुखदायी' के भजन उनके सर्व देव सम भावः' के साक्षी हैं. कुछ भजनों में भगवान राम के आध्यात्मिक स्वरुप का मार्मिक चित्रण है. 'राम नाम गले का हरवा', 'बहे राम रस गंगा', 'चल मन सीता-राम की शरण' तथा 'रघुवर की कृपा हो जाती है' आदि में विराग भावः की प्रधानता है. भगवान राम, शिव या कृष्ण सभी के प्रति भजनकार की समान श्रद्धा है. 'शिव जी की आयी बारात', 'गिरिजा कर सोलह सिंगार', 'मन भावन मुरली', 'श्याम सुंदर नन्दलाल'आदि भजन भक्तिभाव में तत्व ज्ञान के द्योतक हैं. सामान्यतः भक्तिमार्गी केवल निज इष्ट के प्रति समर्पित होता है.एक बार मथुरा जनर पर संत तुलसीदास ने कृष्ण मन्दिर में कहा था- 'कहा कहों छवि आपकी भले बने हो नाथ. तुलसी मस्तक तब नवे धनुष-बान लो हाथ.' माताजी अपवाद हैं. वे कण-कण में भगवान को देखती हैं. 'राम नाम सुखदायी' के भजन उनके सर्व देव सम भावः' के साक्षी हैं. इतिहास का एक अनखुला अध्याय : श्रीमती शान्ति देवी वर्मा जन्म : १८ - १० - १९२३, नगीना, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश. ०२.००.०० बजे.
निधन : २४ - ११ - २००८, जबलपुर, मध्य प्रदेश. २०.२०.०० बजे.
आत्मजा : राय बहादुर माता प्रसाद सिन्हा 'रईस', ओनरेरी मजिस्ट्रेट मैनपुरी.
पति : श्री राजबहादुर वर्मा, सेवानिवृत्त जेल अधीक्षक, लेखक, संस्थापक अभियान जबलपुर.
बचपन अत्यन्त सम्पन्नता, सुख तथा ऐश्वर्य में बीता. पिता आरम्भ में अंग्रेजों के विश्वस्त सहयोगी रहे किंतु गाँधी जी के आव्हान पर ओनरेरी मजिस्ट्रेट पद त्याग कर पं. नेहरू के मार्गदर्शन में कांग्रेस के सत्याग्रही बने. विदेशी बर्तन तोडे गए, विदेश वस्त्र जलाये गए. बच्चों की अंगरेजी शिक्षिका छुडाकर संगीत व् हिन्दी की शिक्षिकाएं लगाईं गयीं. रोज साथ में पार्टी करनेवाले अंग्रेज दोस्त ही सत्याग्रह करने पर कैद करने लगे. १९३९ में त्रिपुरी कांग्रेस सम्मलेन में भाग लेने जबलपुर आए. सेठ गोविन्द दस एवं पं. द्वारका प्रसाद मिश्रा के नेतृत्व में सक्रिय सत्याग्रही स्वयमसेवक श्री ज्वाला प्रसाद वर्मा से भेंट हुई. उनके साथ शहर कोतवाली के समीप उनका घर व बाड़ा देखा. फलतः उनके छोटे भाई श्री राज बहादुर वर्मा, (तत्कालीन सहायक जेलर, जेल अधीक्षक सेवा निवृत्त) से बेटी शान्ति का विवाह किया. कुछ ही वर्षों बाद माता प्रसाद जी चल बसे. पति के साथ संघर्ष पूर्ण जीवन बिताया. बड़े नंदोई स्व. जगन्नाथ प्रसाद वर्मा (नागपुर में डॉ. हेडगेवार, कैप्टेन मुंजे व् वीर विनायक दामोदर के सहयोगी, सशस्त्र संगठनों राम सेना व शिव सेना के संस्थापक, राष्ट्रीय हिन्दू महासभा के महामंत्री) तथा जेठानियों का असामयिक निधन होने पर औदार्य भावः से उनके नन्हें बच्चों पर ममता उडेली. पति की अल्प आय में भी बच्चों की पढाई-लिखाई को प्राथमिकता दी. तरुणाई में ही कुटुंब की वरिष्ठ महिला की जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करने के साथ पति व बच्चों को असाधारण सहयोग दिया. बड़ी बेटी आशा स्नातक व स्नाकोत्तर उपाधि प्राप्त करनेवाली खानदान की पहली लड़की हुईं जिन्होंने शाली अल्प बचत बैंक 'संचायिका' के विकास में कीर्तिमान स्थापित कर प्रदेश का एकमात्र स्वर्ण पदक अर्जित किया तथा उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में लगातार २० वर्षों तक ८०% से अधिक परिणाम देने का कीर्तिमान बनाया. अन्य पुत्री प्रो. किरण श्रीवास्तव ने लोक सेवा आयोग की चयन सूची में दूसरा स्थान पाया. पुत्र वधु प्रो. डॉ. साधना वर्मा को शोध कार्य के लिए वे सतत प्रेरित करती थीं. 'राम नाम सुख दाई' श्रीमती शान्ति देवी द्वारा रचित भजनों का संग्रह है. उनहोंने स्थानीय राज कुमारी बाई बाल निकेतन में अनाथ कन्याओं का कन्या दान कर एक स्वस्थ परम्परा का श्री गणेश किया जो निरंतर विकसित हो रही है. दिवंगत स्वजनों की स्मृति में बाल निकेतन के बच्चों को एक समय भोजन कराने के कार्यक्रम को सफल बनने में उनका महत्वपूर्ण सहयोग रहा. अभियान संस्था की स्थापना, पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, कचरा निस्तारण, दहेज़ निषेध, प्रौढ़ शिक्षा आदि कार्यक्रमों में वे यथा शक्ति सक्रिय रहीं. उनके द्वारा गत १५ वर्षों से श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों पर 'शान्ति-राज' सम्मान प्रदान किया जाता रहा है.

रविवार, 4 जनवरी 2009


हे करुणा सिन्धु भगवन


हे करुणा सिन्धु भगवन!, तुम प्रेम से मिल जात हो।

श्याम सुंदर सांवरे दो दरस, क्यों तडपात हो.?


द्रौपदी की विनय सुन, धाये थे सब को छोड़कर।

प्रेम से हे नाथ! तुम भी, भक्त-वश हो जात हो।


भगत धन्ना जाट की,खाई थीं रूखी रोटियां।

ग्वाल-बाल साथ मिल, माखन भी प्रभु चुरात हो।


संसार के कल्याण हित,मारा था प्रभु ने कंस को।

भक्त को भव सागरों से,पार तुम्हीं लगात हो।


'शान्ति' हो बेआसरा,दम तोड़ती मँझधार में।

है आस तुमरे दरस की,काहे न झलक दिखात हो?



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श्याम सुंदर नन्दलाल


श्याम सुंदर नन्दलाल, अब दरस दिखाइए।

तरस रहे प्राण, इन्हें और न तरसाइए।


त्याग गोकुल वृन्द मथुरा, द्वारिका जा के बसे।

सुध बिसारी काहे हमरी, ऊधो जी बतलाइये।


ज्ञान-ध्यान हम न जानें, नेह के नाते को मानें।

गोपियाँ सारी दुखारी, बांसुरी बजाइए।


टेरती यमुना की लहरें, फूले ना कदंब टेरे।

खो गए गोपाल कहाँ?, दधि-मखन चुराइए।



तन में जब तक शक्ति रहे, मन उन्हीं की भक्ति करे।

जा के ऊधो सांवरे को, हाल सब बताइए।



दूर भी रहें तो नन्द- लाल न बिसराइये।

'शान्ति' है अशांत, दरश दे सुखी बनाइये।


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श्रीमती शान्ति देवी वर्मा


वरिष्ठ कवयित्री शान्ति देवी वर्मा का निधन
जबलपुर, २४-११-२००८। वरिष्ठ कवयित्री व लेखिका श्रीमती शान्ति देवी वर्मा का ८६ वर्ष की आयु में आज जबलपुर में निधन हो गया। बापू के नेतृत्व में स्वंतंत्रता सत्याग्रही बनने के लिए ऑनरेरी मजिस्ट्रेट पद से त्यागपत्र देकर विदेशी वस्त्रों की होली जलानेवाले राय बहादुर माता प्रसाद सिन्हा 'रईस' मैनपुरी उत्तर प्रदेश की ज्येष्ठ पुत्री शान्ति देवी का विवाह जबलपुर मध्य प्रदेश के स्वतंत्रता सत्याग्रही स्व. ज्वाला प्रसाद वर्मा के छोटे भाई श्री राजबहादुर वर्मा सेवा निवृत्त जेल अधीक्षक से हुआ था। साहित्यिक संस्था 'अभियान' जबलपुर, रचनाकारों हेतु दिव्य नर्मदा अलंकरण, दिव्य नर्मदा पत्रिका तथा समन्वय प्रकाशन की स्थापना कर नगर की साहित्यिक चेतना को गति देने में उन्होंने महती भूमिका निभायी। अपने पुत्र संजीव वर्मा 'सलिल', पुत्री आशा वर्मा तथा पुत्रवधू डॉ. साधना वर्मा को साहित्यिक रचनाकर्म तथा समाज व् पर्यावरण सुधार के कार्यक्रमों के माध्यम से सतत समर्पित रहने की प्रेरणा उनहोंने दी। उनके निधन के साथ इतिहास का एक अध्याय समाप्त हो गया। उनके अन्तिम संस्कार में सनातन सलिला नर्मदा तट पर ग्वारीघाट में बड़ी संख्या में साहित्यकार, समाज सुधारक तथा सम्बन्धी सम्मिलित हुए।